Friday 22 February 2019

12वीं बोर्ड : सालभर नहीं पढ़ा तो अब ऐसे करें पढ़ाई शुरू, आएंगे सबसे अच्छे नंबर

पेपर के दौरान स्टूडेंट्स ही नहीं बल्कि पेरेंट्स भी नर्वस होने लगते है।
पेरेंट्स बच्चों के सामने परीक्षा के रिज़ल्ट की चिंता ज़ाहिर न करें।
इस दौरान बच्चे के खानपान और नींद पर भी ध्यान देना ज़रूरी है।
जब भी 12वीं परीक्षा की डेट शीट आती है तो जो बच्चे इस पेपर को देंगे वह तो नर्वस होते ही हैं साथ ही पूरे देश में एक गंभीर माहौल बन जाता है। इस बात में कोई दोराय नहीं है कि बारहवीं की परीक्षा इसलिए भी महत्वपूर्ण होती है क्योंकि इससे हमारा भविष्य तय होता है। यदि आप कॉलेज में एडमिशन लेना चाहते हैं तो जरूरी है कि आप अच्छे नंबर लाएं। कुछ बच्चे सालभर लगातार पढ़ाई के टच में रहते हैं तो साथ साथ पढ़ते हैं। जबकि कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जो सिर्फ पेपर के वक्त ही किताबें उठाते हैं। अगर आप भी उन्हीं में से एक हैं तो कोई नहीं, इस चीज की टेंशन लेने के बजाय अगर आप अभी से सही टाइम मैनेजमेंट बना कर पढ़ेंगे तो अच्छे नंबरों से पास हो सकते हैं। बोर्ड की परीक्षा के नाम से केवल स्टूडेंट्स ही नहीं बल्कि पेरेंट्स भी नर्वस होने लगते है। ऐसी समस्या से बचने के लिए बेहतर यही होगा कि अगर आपके बच्चे को अगले साल बोर्ड की परीक्षा में शामिल होना है तो आप उसके लिए अभी से ही तैयारी में जुट जाएं। 



क्या करें पेरेंट्स
बेवजह रोक-टोक से बचें और उसके सामने हमेशा परीक्षा के रिज़ल्ट की चिंता ज़ाहिर न करें। 
आप उसे समझाएं कि रिज़ल्ट के बारे में सोचने के बजाय तुम केवल पढ़ाई पर ध्यान दो। परीक्षा में कम अंक लाने वाले छात्र भी करियर के दूसरे क्षेत्रों में बहुत आगे निकल सकते हैं।
उसे अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना सिखाएं। अगर वह किसी एक लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित नही कर पाता तो इस बात को लेकर अधिक परेशान न हो।
कई बार मल्टी टैलेंटेड या क्रिएटिव बच्चों का ध्यान लंबे समय तक किसी एक लक्ष्य पर टिक नहीं पाता। ऐसी स्थिति में करियर काउंसलर की मदद ली जा सकती है।  
परिवार का माहौल हमेशा खुशनुमा बनाए रखें, बच्चे के खानपान और नींद पर भी ध्यान देना ज़रूरी है।
आजकल बच्चों पर पढ़ाई का दबाव बहुत जयादा है। परीक्षा में अच्छे अंक लाने के लिए वे अपनी तरफ से पूरी मेहनत करते है लेकिन उनके सामने एक बड़ी चुनौती यह भी होती है कि अधिकतर छात्रों को इसके साथ इंजीनियरिंग या मेडिकल की प्रवेश परीक्षा की भी तैयारी करनी पड़ती है। 
उनका एक-एक पल बहुत कीमती होता है, ऐसी स्थिति में कई बार वे बहुत तनावग्रस्त हो जाते है। अत: उनके लिए माता-पिता का सहयोग और मार्गदर्शन बहुत ज़रूरी होता है। 

घर का माहौल
कुछ परिवारों में परीक्षा के दौरान माता-पिता बच्चों के साथ अनावश्यक सख्ती बरतने लगते है।
परिवार का माहौल अनुशासित ज़रूर होना चाहिए, पर इसकी अधिकता से उन्हे घबराहट होने लगती है और वे पेरेंट्स के साथ अपनी समस्याओं के बारे में बात नही कर पाते। इसलिए अनुशासित माहौल में भी बच्चों के साथ सहज संवाद बनाए रखें, ताकि वे आपसे बेझिझक बात कर सकें। गुरुग्राम स्थित कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल की क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. श्वेता शर्मा के अनुसार, बच्चों के साथ पेरेंट्स को भी कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। आइए जानते हैं क्या हैं वो बातें
अपने बच्चों की शारीरिक-मानसिक सेहत का खयाल रखना भी आपकी जि़म्मेदारी है।
कई बार पढ़ाई के दबाव के कारण बच्चे खेलकूद जैसी शारीरिक गतिविधियों से दूर हो जाते है। इससे उन्है शरीर में दर्द और पाचन संबंधी समस्याएं परेशान कर सकती है। इसलिए शाम को थोड़ी देर के लिए उन्हें किसी आउटडोर एक्टिविटी के लिए घर से बाहर ज़रूर भेजें।
डिनर के दौरान उनके साथ पढ़ाई के अलावा किसी अन्य विषय पर हलकी-फुलकी बातचीत करें। इससे उनका सारा तनाव दूर हो जाएगा। उनके सामने कभी भी अपनी चिंता ज़ाहिर न करें, इसका उनका मन अशांत होगा और वे पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित नहींं कर पाएंगे।
हर स्टूडेंट के पढऩे का तरीका दूसरे से अलग होता है। कुछ बच्चे सुबह जल्दी उठ जाते है तो कुछ देर रात तक जागकर पढऩा पसंद करते है। ऐसी छोटी-छोटी बातों के लिए अनावश्यक रोक-टोक न करें।
आपका बच्चा चाहे पढ़ाई का कोई भी तरीका अपनाए पर आप उससे पर्याप्त नींद लेने को कहें क्योंकि अनिद्रा का स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। इससे पढ़ी गई बातें याद रखने में भी बहुत परेशानी होती है।  

बेझिझक लें सहयोग
यह ज़रूरी नही है कि सभी अभिभावक बच्चे को खुद पढ़ाने में सक्षम हो। अत: परीक्षा की विस्तृत तैयारी के लिए अगर उसे ट्यूशन या कोचिंग की ज़रूरत महसूस हो तो उसके लिए यह सुविधा अवश्य उपलब्ध कराएं पर इसके चुनाव में सजगता ज़रूरी है क्योंकि आजकल मनमानी फीस वसूलने वाले वैसे संस्थानों की तादाद बढ़ती जा रही हो, जहां योग्य शिक्षकों की व्यवस्था नहीं होती। इसलिए बेहतर यही होगा कि आप अपने बच्चों को नौवीं कक्षा से हो पढ़ाई पर फोकस करने के लिए प्रेरित करें। 

अच्छी नही है यह आदत
तुलना करना सहज मानवीय स्वभाव है पर परवरिश के मामले में यह आदत बहुत नुकसानदेह साबित होती है। अकसर लोग पास-पड़ोस, दोस्तों या रिश्तेदारों के बच्चों से अपनी संतान की तुलना करते है। कई बार वे दूसरों के सामने ही अपने बच्चे को डांटना शुरू कर देते है। ऐसा कभी न करें। उनके कोमल मन पर इसका बहुत बुरा असर पड़ता है। इससे बच्चों के मन में विद्रोह या हीनता की भावना पनपने लगती है। उन्हें ऐसा लगता है कि मेरे माता-पिता मुझसे प्यार नही करते। इसलिए बेहतर यही होगा कि अपने बच्चे की रुचियों या योग्यताओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें आगे बढऩे का मौका दें। बेशक आप उसका मार्गदर्शन करें पर दूसरों से उसकी तुलना न करें। बच्चों के माक्र्स को अपनी प्रतिष्ठा का मुद्दा न बनाएं। कई बार स्टूडेंट  यही सोच कर परेशान रहता है कि अगर मैं  अच्छे नंबर नहीं ला पाया तो माता-पिता की सामाजिक प्रतिष्ठा प्रभावित होगी। ऐसे भय का परीक्षा की तैयारी पर नकारात्मक असर पड़ता है। इसलिए अपने बच्चे की योग्यता को पहचानते हुए उससे उसी के अनुकूल अपेक्षाएं रखनी चाहिए।   



सिखाएं सही टाइम मैनेजमेंट
बच्चों को समय-प्रबंधन का महत्व समझाएं। स्टडी टाइम-टेबल बनाने में उसकी मदद करें।  यह भी देखना ज़रूरी है कि वह अपने रूटीन का सही ढंग से पालन कर रहा है या नही? ध्यान रहा कि उसकी सेल्फ स्टडी में रिवीज़न और पुराने प्रश्नपत्रों को हल करने की प्रैक्टिस के बीच सही तालमेल होना चाहिए। आप उसे समझाएं कि वह रटने के बजाय टॉपिक को समझकर याद रखने की कोशिश करे। बेहतर यही होगा कि परीक्षा की तैयारी के दौरान वह मोबाइल-इंटरनेट से पूरी तरह दूर रहे। अगर ऐसा संभव न हो तो इन सुविधाओं के इस्तेमाल की समय-सीमा निर्धारित कर दें। एक घंटे के बाद उससे मोबाइल फोन वापस मांग लें। उसके स्टडी रूम में पढऩे के लिए लाइट की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। अगर घर में छोटे भाई-बहन होगे तो इस बात का ध्यान रखें कि उनकी वजह से बड़े बच्चे की पढ़ाई डिस्टर्ब न हां। हर डेढ़-दो घंटे के बाद पांच-दस मिनट का ब्रेक लेना ज़रूरी है ताकि आंखों को थोड़ा आराम मिले पर ध्यान रह कि यह गैप जयादा लंबा न हो। 

         

अपने सपने न थोपें
अधिकतर अभिभावक अपने अधूरे सपनों का बोझ बच्चों के कंधों पर डाल देते है। अपनी संतान के अच्छे भविष्य की इच्छा रखने में कोई बुराई नही है पर उसकी रुचियों और क्षमता को नज़रअंदाज़ करके उससे वैसी उम्मीदें करना गलत है, जिन्हें वह पूरा न कर सके। सर्वाधिक अंक हासिल करने की उम्मीद छात्रों को तनावग्रस्त कर देती है। इससे वे परीक्षा की तैयारी में ध्यान केंद्रित नही कर पाते। कई बार पेरेंट्स की अति महत्वाकांक्षा के शिकार बच्चे आत्महत्या तक कर लेते है। तैयारी के दौरान उसे अच्छे ढंग से पढऩे के लिए प्रोत्साहित करें लेकिन उस पर अधिक अंक लाने का दबाव न बनाएं। पेरेंट्स को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि आनुवंशिक रूप से संतान में अपने माता-पिता के ही गुण-अवगुण होते है। इसलिए बच्चों पर अच्छे अंक लाने का दबाव बनाने से पहले एक बार उन्हें अपने स्कूली जीवन को भी याद करना चाहिए। अगर माता-पिता पढ़ाई में औसत या कमज़ोर रहे होगे तो बच्चे से जीनियस होने की उम्मीद करना बेमानी है। प्रैक्टिस या ट्रेनिंग से बच्चे की स्किल्स को कुछ हद तक सुधारा जा सकता है पर उसके आईक्यू लेवल को नही बढ़ाया जा सकता।

हर स्टूडेंट अपने आप में खास होता है। इसलिए किसी कमी के लिए डांटने-फटकारने के बजाय उसके अच्छे गुणों को पहचानने की कोशिश करें। अगर उसे परीक्षा में कम माक्र्स मिले हों तो भी निराश होने के बजाय उसे यह समझाएं कि आजकल छात्रों के सामने करियर के सैकड़ों विकल्प मौज़ूद हो और वे बहुत आसानी से मनपसंद करियर का चुनाव कर सकते है। अपनी संतान को यह भरोसा दिलाना बहुत ज़रूरी है कि तुम पूरी ईमानदारी से पढ़ाई करो, रिज़ल्ट चाहे जो भी आए, हम हमेशा तुम्हारे साथ है। इस तरह पेरेंट्स का सकारात्मक सहयोग और मार्गदर्शन बच्चों के लिए परीक्षा की तैयारी को आसान बना देता है।

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