Thursday 21 February 2019

जिम करते समय चोट लगने पर क्‍या करें? जानें एक्‍सपर्ट की राय

वर्कआउट इंजरी के बहुत से मामले देखने को मिल रहे हैं।
जिम में एक्सरसाइज़ करने का ट्रेंड चल निकला है।
वर्कआउट किसी एक्सपर्ट की मदद से ही करें।


क्या आप जिम में वज़न घटाने के लिए एकदम से उत्साहित होकर ज्य़ादा वर्कआउट कर बैठते हैं? या फिर स्ट्रेचिंग या कसरत करते वक्त चोट लगने पर भी एक्सरसाइज़ जारी रखते हैं? अगर आप इनमें से कुछ भी ऐसा कर रहे हैं तो बिलकुल गलत है। चिकित्सक के अनुसार ज्य़ादा ज़ोर आज़माते हुए कुछ लोग मस्क्युलोस्केलटल इंजरी से पीडि़त हो सकते हैं। आजकल क्लिनिक में भी वर्कआउट इंजरी के बहुत से मामले देखने को मिल रहे हैं। हाल के वर्षों में तो जिम में एक्सरसाइज़ करने का ट्रेंड चल निकला है। यह आज की ज़रूरत भी है, इसीलिए जो भी वर्कआउट करें, अपने ट्रेनर या किसी एक्सपर्ट की मदद से ही करें।



होती है ये समस्याएं
आजकल तेज़ी से विकसित होते शहरी लाइफस्टाइल और व्यायाम की गलत पद्घतियों के कारण मसल या लिगमेंट इंजरी, बार-बार होने वाली स्ट्रेस इंजरी, कार्टलिज टियर्स, टेंडनाइटिस जैसी आम इंजरी बढऩे लगी है। इसके अलावा जिम में मसल पुल और खिंचाव, शिन स्प्लिंट, नी इंजरीज़, कंधे की इंजरी और कलाई में मोच आना शामिल है।

वर्कआउट संबंधी इंजरीज़
जिम में एक्सरसाइज़ करते वक्त शरीर के कई हिस्सों में चोटें लगना आम बात है। ऐसे में शरीर के किस हिस्से में किस प्रकार की चोटें लगती हैं, जानें-

कंधा
कंप्यूटर पर देर तक काम करने के चलते ज्य़ादातर लोगों के कंधों में खिंचाव आ जाता है। इसलिए एक्सपट्र्स अधिक समय तक एक ही पोस्चर में बैठने को मना करते हैं और थोड़ी-थोड़ी देर में सीट से उठने को भी कहते हैं। अगर आप प्रशिक्षण के बिना अपनी मांसपेशियों पर ज्य़ादा जोर डालते हैं तो कमज़ोर मांसपेशियां अकड़ सकती हैं। मांसपेशियों के समूह रोटेटर कफ कहलाते हैं, जिनसे मूवमेंट नियंत्रित होता है और जोड़ों को स्थिरता मिलती है। इसके अलावा कंधे के दर्द का एक बड़ा कारण रोटेटर कफ मसल हड्डियों की संरचना के बीच अन्य सॉफ्ट टिश्यू में कंप्रेशन या घर्षण होना है। इसे ही शोल्डर इंपिंजमेंट कहा जाता है।

घुटना
घुटने में मोच वर्कआउट इंजरी की एक आम समस्या है। यह अकसर जोड़ों के अति इस्तेमाल के कारण होता है। टे्रडमिल्स का अधिक इस्तेमाल करने वाले लोगों को नी इंजरी होने का ख़तरा रहता है। ट्रेडमिल्स के कारण घुटने पर ज्य़ादा जोर पड़ता है क्योंकि इससे संपर्क के एक ही स्थान पर अत्यधिक दबाव पड़ता है। वहीं ज़मीन पर दौड़ लगाने से घुटने को ज्य़ादा आसानी होती है क्योंकि यहां आपको मशीन की क्षमता के अनुसार नहीं चलना पड़ता है। घुटनों के जोड़ों के ऊपर कार्टलिज और लिगमेंट्स अत्यधिक दबाव के कारण बार-बार स्ट्रेस इंजरी का शिकार हो जाते हैं। कार्टलिज का नु$कसान ज्य़ादा ख़तरनाक होता है क्योंकि इसकी मरम्मत नहीं हो पाती।

लोअर बैक
वेट लिफ्टिंग का लोअर बैक पर ज्य़ादा असर पड़ता है। यदि आप बहुत ज्य़ादा वज़न उठाते रहते हैं तो लोअर बैक की मांसपेशियों में इंजरी और इनफ्लेमेशन हो सकता है। कई मामलों में भारी वज़न उठाने पर स्लिप डिस्क का भी ख़तरा रहता है।

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टखने की मोच
यह समस्या एथलीट्स में अधिक होती है। लिगमेंट्स टिश्यू की ही पट्टियां होती हैं, जो आपकी हड्डियों को एक साथ जोड़कर रखती हैं। टखने पर अधिक दबाव या मरोड़ आपके लिगमेंट को इंजर्ड कर सकता है। जो लोग ऊबड़-खाबड़ सतहों पर टहलते या दौड़ते हैं, उनमें इस समस्या का $खतरा अधिक रहता है। यदि आप वर्कआउट के तहत दौड़ते या हलकी दौड़ लगाते हैं तो अच्छी तरह फिट आने वाले जूते ही पहनें और समतल सतह पर ही दौड़ लगाएं।

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ऐसे करें बचाव
अकसर आपने वर्कप्लेस या आसपास कई ऐसे लोगों को देखा होगा जो इंजर्ड मसल्स, लिगमेंट या कार्टलिज की समस्या से पीडि़त होंगे। इससे पीडि़त होने पर भले ही आपको दवा और कुछ एक्सरसाइज़ कर एक सप्ताह का रेस्ट दे दिया गया हो लेकिन यह दर्द या समस्या स्वस्थ करने में लंबा समय ले लेती है। लिहाज़ा, इससे बचाव ही सर्वोत्तम उपाय है इसलिए इस दौरान व्यायाम और वर्कआउट स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। लेकिन इसमें हमेशा सुधार और कुशल निरीक्षण की ज़रूरत होती है। जानिए ऐसे-

किसी भी तरह की भारी-भरकम एक्सरसाइज़ करने से पहले वॉर्मअप करना ज़रूरी है। व्यायाम करने से पहले स्ट्रेचिंग करने से शरीर में लचीलापन आता है और बॉडी हेवी एक्सरसाइज़ करने के लिए तैयार हो जाती है।
डेली रूटीन में एक ही तरह का व्यायाम भी नहीं करना चाहिए। हाथ, पैर, बाइसेप्स, हिप्स पर समान रूप से उचित ध्यान देना ज़रूरी है। अत्यधिक थकान वाली एक्सरसाइज़ और एक ही तरह की मांसपेशियों के लिए बार-बार व्यायाम करने से मांसपेशियों में खिंचाव और अकडऩ आ सकती है।
यदि आप वेट लिफ्टिंग एक्सरसाइज़ करना शुरू कर रहे हैं तो वज़न में धीरे-धीरे वृद्घि करें ताकि मांसपेशियां उस तनाव में ढल सकें और ज्य़ादा इस्तेमाल से खिंचाव की स्थिति में न आएं। हमेशा कम वज़न उठाने से ही शुरुआत करें। एकदम से भारी वज़न न उठाएं। ऐसा एक सप्ताह तक करें और फिर धीरे-धीरे वज़न बढ़ाना शुरू करें।
एक्सरसाइज़ करने के बाद रिलैक्स करना भी बेहद ज़रूरी है। आम धारणा के विपरीत ट्रेनिंग के दौरान लिगमेंट्स और जोड़ों को व्यापक नु$कसान होने की आशंका रहती है। यदि आपको कोई शारीरिक परेशानी महसूस हो रही है तो थोड़ी देर आराम कर लें।
वेट लिफ्टिंग रूटीन शुरू करने से पहले हमेशा अपने टे्रनर की सलाह मानें। एक्सपर्ट आपकी बॉडी टाइप को अच्छी तरह समझ चुके होते हैं। इसके अलावा अपना वर्कआउट शुरू करने से पहले उपयुक्त पोशाक पहनें।
किसी ऐसे एक्सपर्ट की निगरानी में ट्रेनिंग लें, जो आपकी शरीर की संरचना को भली-भांति जानता हो।

कैसे बचा जाए
सही ग्रिप वाले जूतों का चुनाव करें।
वर्कआउट से पहले 15 मिनट वॉर्मअप करें।
सही प्रशिक्षण लेना ज़रूरी ।
शरीर की क्षमता को पहचानें।
थोड़ी-थोड़ी देर में रिलैक्स भी करें।

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